दशलक्षण पर्व
सम्पूर्ण हिन्दी मासों में भाद्रपद का मास सबसे पवित्र है क्योंकि इस मास में सबसे अधिक व्रत आते हैं । जैसे : - दशलक्षण , षोडशकारण , रत्नत्रय , पुष्पांजलि , आदि ।
यह पर्व वर्ष में तीन बार माघ - चैत्र - भाद्रपद मास में आता है । परन्तु सामान्यत : यह पर्व भाद्रपद में ही मनाया जाता है । श्वेताम्बर भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी से भाद्रपद शुक्ला पंचमी तक तथा दिगम्बर भाद्रपद शुक्ला पंचमी से । प्रारम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तक 10 दिन मनाते हैं ।
इस पर्व में आत्मा के दश गुणों की आराधना की जाती है । इनका सीधा सम्बन्ध आत्मा के कोमल परिणामों से है । इस पर्व का वैशिष्ट्य है कि इसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर आत्मा के गुणों से है । इन गुणों में से एक गुण की भी परिपूर्णता हो जाय तो मोक्ष तत्त्व की उपलब्धि होने में किंचित भी सन्देह नहीं रह जाता है ।
धर्माचरण के माध्यम से शान्ति प्रदायक पर्वो में दशलक्षण पर्व शीर्ष स्थान पर है । इसलिए इसे पर्वाधिराज की उपाधि से विभूषित किया गया है । ये उत्तम दशधर्म आत्मा के भावनात्मक परिवर्तन से उत्पन्न विशुद्ध परिणाम हैं । जो आत्मा को अशुभ कर्मों के बन्ध से रोकने के कारण संवर के हेतु हैं । ख्याति , पूजा आदि से निरपेक्ष होने के कारण इनमें उत्तम विशेषण लगाया गया है । दशलक्षण पर्व के प्रत्येक अङ्ग का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित रूप से है :
1 . उत्तम क्षमा धर्म : - क्रोध का कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध न करना क्षमा है । समर्थ रहने पर भी क्रोधोत्पादक निन्दा , अपमान , गाली - गलौज आदि प्रतिकूल व्यवहार होने पर भी मन में कलुषता न आने देना उत्तम । क्षमा धर्म है ।
2 . उत्तम मार्दव धर्म : - चित्त में मृदुता और व्यवहार में विनम्रता ही मार्दव है । यह मान कषाय के अभाव में प्रकट होता है । जाति , कुल , रूप , ज्ञान , तप , वैभव , प्रभुत्व , ऐश्वर्य सम्बन्धी अभिमान मद कहलाता है । इन्हें विनश्वर समझकर मानकषाय को जीतना उत्तम मार्दव धर्म कहलाता है ।
3 . उत्तम आर्जव धर्म : - आर्जव का अर्थ - ऋजुता सरलता होता है । मन में कुछ , वचन में कुछ , प्रकट में कुछ प्रवृत्ति ही मायाचारी है । इस माया कषाय को जीतकर मन , वचन और काय की क्रिया में एकरूपता लाना उत्तम आर्जव धर्म है ।
4 . उत्तम शौच धर्म : - शौच का अर्थ - पवित्रता है । अत : अपने हृदय में मद क्रोधादिक बढ़ाने वाली जितनी भी दुर्भावनायें हैं , उनमें सबसे प्रवल लोभ कषाय है । इस लोभ पर विजय पाना ही उत्तम शौच धर्म है ।
5 . उत्तम सत्य धर्म : - दूसरों के मन को संताप उत्पन्न करने वाले निष्ठुर , कर्कश और कठोर वचनों का त्याग कर सबसे हितकारी और प्रियवचन बोलना उत्तम सत्य धर्म है ।
6 . उत्तम संयम धर्म : - संयम का अर्थ है - आत्म नियन्त्रण । पाँचों इन्द्रिय एवं मन की प्रवृत्तियों पर अंकुश रखकर उनकी अनर्गल प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण रखना और पट्काय के जीवों की विराधना न करना , उत्तम संयम धर्म है ।
7 . उत्तम तप धर्म : - इच्छाओं के निरोध को तप कहते हैं । विषय कषायों का निग्रह करके बारह प्रकार के तपों में चित्त लगाना , उत्तम तप धर्म है । तप धर्म का मुख्य उद्देश्य चित्त की मलिन वृत्तियों का उन्मूलन है ।
8 . उत्तम त्याग धर्म : - परिग्रह की निवृत्ति को त्याग कहते हैं । बिना किसी प्रत्युपकार की अपेक्षा के अपने पास होने वाली ज्ञानादि सम्पदा को दूसरों के हित व कल्याण के लिए लगाना उत्तम त्याग धर्म है ।
9 . उत्तम आकिञ्चन्य धर्म : - ममत्व के परित्याग को आकिञ्चन्य कहते हैं । आकिञ्चन्य का अर्थ होता है कि मेरा कुछ भी नहीं है । अपने उपकरणों एवं शरीर से भी निर्ममत्व होना ही उत्तम आकिञ्चन्य धर्म है । क्योंकि कई बार सबका त्याग करने के बाद भी उस त्याग के प्रति ममत्व हो सकता है । आकिञ्चन्य धर्म में उस त्याग के प्रति होने वाले ममत्व का भी त्याग कराया जाता है ।
10 . उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म : - आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है । रागोत्पादक साधनों के होने पर भी उन सबसे विरक्त होकर आत्मोन्मुखी बने रहना , उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है ।
सोलहकारण पर्व
प्रतिवर्ष सोलहकारण पर्व भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर आश्विन कृष्णा प्रतिपदा तक मनाया जाता है । सामान्यत : यह पर्व 31 दिन का होता है । इस पर्व में सोलहकारण भावनाओं का चिन्तन किया जाता है । शास्त्रों में 16 भावनायें कही गई हैं । इन भावनाओं से तीर्थकर नामकर्म प्रकृति काबंध होता है । इस कर्मप्रकृति के उदय से समवशरण एवं पंचकल्याणक रूप विभूति प्राप्त होती है ।
इन भावनाओं का विवेचन इस प्रकार है :
( 1 ) दर्शनविशुद्धि : - इस भावना का होना आवश्यक है । क्योंकि इसके न होने पर और शेष सबके अथवा कुछ के होने पर भी तीर्थकर प्रकृति का बंध नहीं होता है । दर्शन शब्द का अर्थ है यथार्थ श्रद्धान अर्थात् जिनेन्द्रदेव द्वारा बताये गये मार्ग का 25 दोषों से रहित और आठ अंगों से सहित पूर्ण श्रद्धान करना ही दर्शनविशुद्धि भावना है ।
( 2 ) विनयसम्पन्नता : - सम्यग्दर्शन , ज्ञान , चारित्र एवं वीर्य की , इनके कारणों की तथा इनके धारकों की विनय करना तथा गुणों तथा आयु में वृद्ध पुरुषों का यथायोग्य आदर सत्कार करना विनयसम्पन्नता कहलाती है ।
( 3 ) शीलवतेषु अनतिचार : - अहिंसा आदि पाँच व्रत हैं तथा इनके पालन में सहायक क्रोधादि का त्याग करना शील कहलाता है । व्रत और शीलों का निर्दोष रीति से पालन करना ही शीलव्रतेष अनतिचार है ।
( 4 ) अभीक्ष्णज्ञानोपयोग : - सदैव ज्ञानाभ्यास में लगे रहना अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग है । जो व्यक्ति निरन्तर धार्मिक ज्ञानाभ्यास करता है , उसके हृदय में मोह रूपी महान अन्धकार निवास नहीं करता है ।
( 5) अभीक्ष्ण संवेग : - सांसारिक विषय भोगों से डरते रहना अभीक्ष्ण संवेग है । शक्तित : त्याग : - अपनी शक्ति को न छिपाते हए आहार , औषधि , अभय , उपकरण आदि का दान देना शक्तित : त्याग है ।
( 7 ) शक्तितः तप : - अपनी शक्ति को न छिपाकर मोक्षमार्ग में उपयोगी तपानुष्ठान करना शक्तितः तप
( 8 ) साधुसमाधि : - दिगम्बर साधु के तप में उपस्थित आपत्तियों का निवारण करना तथा उनके संयम की रक्षा करना , साधु समाधि है ।
( 9 ) वैयावृत्यकरण : - गुणी पुरुषों की साधना में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का प्रयत्न करना एवं उनकी सेवा सुश्रूषा करना , वैयावृत्यकरण है ।
( 10 - 13 ) अर्हत्भक्ति , आचार्यभक्ति , बहुश्रुतभक्ति , प्रवचन भक्ति - अरिहन्त - आचार्य - बहुश्रुत प्रवचन ( शास्त्र ) इन चारों में शुद्ध निष्ठापूर्वक अनुराग रखना ही अरिहंत - आचार्य - बहुश्रुत - प्रवचन भक्ति है । बहुश्रुत का अर्थ उपाध्याय है । प्रवचन का अर्थ जिनवाणी है । ।
( 14 ) आवश्यकापरिहाणि : - सामायिक , चतुर्विंशतिस्तव , वन्दना , प्रतिक्रमण , प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग । इन छह आवश्यक क्रियाओं को यथाकाल अविच्छिन्न रूप से करते रहना आवश्यकापरिहाणि है ।
( 15 ) मार्गप्रभावना : - अपने श्रेष्ठ ज्ञान और आचरण से मोक्षमार्ग का प्रचार - प्रसार करना मार्गप्रभावना
( 16 ) प्रवचनवत्सलत्व : - गाय के बछड़े की तरह साधर्मी जनों से निच्छल - निष्काम स्नेह रखना प्रवचनवत्सलत्व है ।
अभ्यास प्रश्न
1 . भाद्रपद माह क्यों पवित्र होता है ?
2 . दशलक्षण पर्व वर्ष में कितनी बार आता है ?
3 . दस धर्मों के बारे में संक्षेप में बताइए ।
4 . सोलहकारण पर्व कब से कब तक मनाया जाता है ?
5 . सोलहकारण भावना का चिन्तन करने से क्या लाभ है ?
6 . सोलह भावनाओं में से कौनसी भावना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है ? |
7 . अभीक्ष्णज्ञानोपयोग किसे कहते हैं , इससे क्या लाभ है ?
8 . शक्तित : तप , त्याग से आप क्या समझते हैं ?