शेर जलेबी खा रहा है - Jain Story

राजा के यहाँ दीवान और वह भी श्रेष्ठ श्रावक , श्रद्धावान , विवेकवान व क्रियावान । हिंसक होने का तो उनका प्रश्न ही नहीं था । ऐसा कोई भी काम वह करने को तैयार न होते जिससे हिंसा की पष्टि होती हो । जयपुर महाराज ने भी उन्हें पूरी सहूलियत दे रखी थी कि वह अपने अहिंसा धर्म का पूर्ण रीति से पालन करते रहें । तभी तो उन्होंने अपने पालतू शेर को भोजन कराने की ड्यूटी से दीवान जी को मुक्त कर रखा था । अन्य कर्मचारियों को तो यह काम करना पड़ता परन्तु दीवान अमरचन्द इससे छुट्टी पाये रहें , ऐसा भला और कर्मचारियों को कैसे बर्दाश्त हो सकता था ? उनको दीवान जी से ईर्ष्या होना स्वाभाविक ही था । तभी तो वे हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की फिराक में रहते थे । “ महाराज , आज जिस कर्मचारी का शेर को भोजन खिलाने का नम्बर है , वह तो छुट्टी पर है । आज्ञा हो तो दीवान अमरचन्द को आज यह काम सौंप दिया जाये । ” मन्त्री जी ने पूछा । महाराज ने अनमने मन से उत्तर दे दिया , " जैसा ठीक समझो मन्त्री जी । " दीवान जी ने सुना , बेचारे सकपका कर रह गये । मांसाहारी शेर को भोजन कैसे कराऊँगा मैं ? वह तो मांसाहारी और मैं पूर्ण अहिंसक । अजीब पशोपेश में पड़े चिन्तित थे बेचारे दीवान जी । सोचने लगे , महाराज से इस काम के लिये माफी मांग लूँ । परन्तु यह सोचकर चुप रहे कि राजा साहब को किसी ने मेरे खिलाफ अवश्य ही भड़काया है और ऐसी हालत में वह शायद मुझे इस काम से छुट्टी न दें । चलो , जो होगा देखा जायेगा और पहुँच गये शेर के पिंजड़े के पास । शेर का पिंजड़ा खोल दिया गया । शेर गुर्राता हुआ आया । दीवान जी आगे बढ़े और हाथ में लिया जलेबी का थाल शेर के सामने रखा और कहने लगे , " हे वनराज , हे सिंहराज , मैं जानता हूँ तुम्हें मांस खाना ही रुचिकर है । परन्तु मैं मांस खिलाने से मजबूर हूँ क्योंकि मेरा अहिंसाव्रत है , मैं पूर्ण शाकाहारी हूँ । फिर भी यदि तुम्हें मांस खाना ही रुचिकर है तो मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ । तुम सहर्ष मुझे खा सकते हो । और मित्र ! यदि तम्हें अपना पेट भरना ही अभीष्ट है तो मैं तुम्हारे लिये जलेबी का थाल लाया हूँ । तुम खुशी खुशी इस थाल भरी जलेबी को खाओ । तुम्हारी भूख भी मिट जायेगी और मेरा व्रत भी अटूट बना रहेगा ।

शेर ने जलेबियों को सूंघा , दीवान जी की बातें सुनी और उनके मनोभावों को पढ़ा । और सब देखकर चकित रह गये कि शेर गटागट जलेबियाँ खा रहा है । पूरा थाल सफाचट कर दिया और बड़े शान्त भाव से पिंजड़े में वापस चला गया । सभी कर्मचारियों के मुंह लटक गये । उनकी योजना धरी की धरी रह गई । जो दीवान अमरचन्द जी को नीचा दिखाने चले थे , वे स्वयं नीचे आ गये । सोचने लगे कि जमीन फट जाये और हम उसमें समा जायें । क्या मुँह लेकर राजा साहब के पास जायें ? राजा साहब के कानों में भी किसी प्रकार यह सब बातें पहुंच गई । वह स्वयं वहाँ आये , दीवान जी का चेहरा देखा तो पाया जैसे कोई बड़ी भारी परीक्षा में पास हुए हों । दीवान जी ने देखा है । राजा साहब आप यहाँ ? आपके शेर को मैंने भोजन करा दिया है , आप निश्चिन्त रहिये । " " दीवान जी , मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ । आपकी दृढ प्रतिज्ञा के सामने इस क्रूर , हिंसक , मांसाहारी शेर को भी झुकना पड़ा । यह सब आपके अहिंसा धर्म का ही प्रभाव है । हिंसक से भी हिंसक प्राणी का भी हदय बदल जाता है जब वह अहिंसक के सामने आता है , ऐसा मुझे आज दृढ़ विश्वास हो गया है । " राजा साहब ने कहा और दीवान जी को अपने गले लगा लिया । 
चारों ओर एक ही जयकारा गूंज उठा " अहिंसा धर्म की जय । " अब तो आपकी शंका दूर हो गई होगी शेर और गाय एक साथ कैसे बैठ जाते हैं नग्न दिगम्बर साधु के चरणों में ।
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